Babu Yugul Kishorji kota
About

बाबू जुगलकिशोर जैन 'युगल', कोटा (राजस्थान)
जन्म: 5 अप्रैल, 1924 खुरी, जिला - कोटा (राज.)
शिक्षा : एम.ए., साहित्यरत्न

ख्यातिप्राप्त दार्शनिक विद्वान बाबू जुगलकिशोर जैन 'युगल' को प्रसिद्ध देव शास्त्र-गुरु पूजा - केवल रवि किरणो से ..........एवं सिद्ध पूजा - निज वज्र पौरुष से प्रभो ........... लिखने के कारण समाज में वही स्थान प्राप्त है, जो हिन्दी साहित्य में उसने कहा था कहानी के लेखक पण्डित चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' के।'युगल जी उच्च कोटि के कवि, लेखक एवं ओजस्वी वक्ता हैं। 15 वर्ष की अल्पवय में ही आप में काव्य-प्रसून अंकुरित होने लगे थे। तब राष्ट्रीय चेतना एवं स्वतंत्रता-संग्राम का युग था। युग के प्रवाह में आपकी काव्यधारा राष्ट्रीय रचनाओं से प्रारम्भ हुई। पारम्परिक धार्मिक संस्कार तो आप में बचपन से ही थे, किन्तु उन्हें सम्यक दिशा मिली इस युग के आध्यात्मिक क्रान्ति स्रष्टा श्री कानजी स्वामी से।

स्वयं श्री युगल जी' के शब्दों में - 'गुरुदेव से ही मुझे जीवन एवं जीवनपथ मिला है।' युगलजी दर्शन को जीवन का समग्र स्वरूप मानते हैं और दर्शन की सर्वांग क्रियान्विति चैतन्य के साक्षात्कार में स्थापित करते हैं

जो चेतन के भीतर झांका,उसने जीवन देखा
बाकी ने तो खींची रे !परितप्त तटों पर रेखा

जनमानस में जैनदर्शन का साधारणीकरण आपके काव्य का मूल लक्ष्य है।

आदरणीय बाबूजी सचमुच अध्यात्म जगत की एक निधि हैं, जिनसे जैन जगत गोरवान्वित हैं। स्वभाव से अत्यन्त कोमल , किंतु सिद्धान्तों के प्रति अचलमेरु सम व्यक्तित्व के धनी बाबूजी जैन तत्वज्ञान के गहन चिंतक, सफल काव्यविद, ओजस्वी प्रवचनकार एवं वात्सल्य से ओत - प्रोत महान तत्वज्ञ हैं। अत्यन्त सरल किन्तु सुदृढ़ साहित्यिक भाषा में जैन तत्वज्ञान का विवेचन / लेखन आपकी मौलिक विशेषता है जो श्रोता / पाठक के हृदय में व्याप्त चिर अज्ञानतम परतों को उधेड़ते हुए उसे शुद्ध चिद्रप की मंगलमय अनुभूति के सुरम्य आलोक से आलोकित करने में सक्षम है । अध्यात्म जैसा रूक्ष विषय भी आपकी वाणी / लेखनी का सहचर पाकर मधुर अमृत के समान बनकर चैतन्य परिणती को परितृप्त कर देता है ।

लोकेषणा से दूर आपका सहज , सरल एवं निश्छल व्यक्तिव; साधर्मी वात्सल्य , विषमतम परिस्थितियों में दूरदर्शी निर्णयकी क्षमता , अध्यात्म के साथ-साथ भक्तिरस से अभिसिंचित ह्रदय , विलासितामुक्त जीवनचर्या , असीम शारीरिक स्वास्थ की प्रतिकूलता के मध्य भी तत्वज्ञान की अविराम चिंतनधारा आपके जीवन की अनुकरणीय विशेषतायें है ।

आपका लेखन बहुआयामी है । आपने जहाँ अध्यात्मके उत्कर्ष को स्पर्श किया है वहीं भक्तिरस एवं सदाचार भी आपकी लेखनी व वाणी में अछूते नहीं रहे हैं।
आप सफल गद्य एवं नाट्य-लेखक भी हैं। आपके साहित्य कोष से लोकोत्तर रचनाओं में काव्य संग्रह "चैतन्य वाटिका'' एवं गद्य विद्या "चैतन्य विहार" में एवं आध्यात्मिक चिंतन से चैतन्य की चहल - पहल में साहित्य व अध्यात्म के समावेश से जैन जगत को नया आयाम मिला है।

बाबूजी की सूक्ष्म चिंतन की लेखनी से अनेक आध्यात्मिक चिंतन - दृष्टि का विषय, सम्यकदर्शन, सम्यक् ज्ञान, तत्वज्ञान एक अनूठी जीवन कला, जैन दर्शन स्वरूप एवं समीक्षा, अनेकांत, निमित्त - उपादान, आदि विषयों पर लेख लिखे गये है ।

युगलजी अखिल भारतीय स्तर के प्रवचनकार हैं और उनकी उपस्थिति धार्मिक आयोजनों का महत्त्वपूर्ण आकर्षण मानी जाती है।

हे विश्व कवि मैं तुमको क्या अर्पण कर दूं मेरी क्या हस्ती है, जो तुमको तर्पण कर दूं तुम हो सूर्य गगन के, मैं कण माटी का तुम ही सागर ज्ञान सिन्धु, मैं एक बिन्दु सा

बाबू जुगलकिशोर जैनयुगल

Life Sketch

बाबू युगलजी के जीवन से कुछ यादें